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Tuesday, April 12, 2011
चिन्ता
चिन्ता, चिन्ता व् फिकर एक शब्द लगता है। पर इसको समझाने की जरूरत है। सब अपने आप में व्यस्त हैं । नीतियाँ बनाने वाले अपने में मस्त हैं। कोई तो बेखर है व् कोई जनबुजकर अनजान है । कर सकता है पर उसे अपने को सवारने के अलावा समय नहीं है। कौन किसकी फिकर करेगा यह सवाल बड़ा है। बड़ी मछली छोटी मछली को खा रही है। सब देख रहें हैं कोई बोलने वाला नहीं । ऊपर वाला सब पर नजर रखे हुय है। उससे वो डरते नहीं हैं। हडियाँ जबाव दे रहीं हैं तब भी वो इकठा करने में लगा हुआ हैं। पूरा जाल उसने बिछा लिया है । फिर भी मन उस का नहीं भरा है। शायद एस से आगे का मार्ग उस के पास हो। !! चिन्ता पर चिंतन होना चाहिए !! धन्यवाद ! द्वारा-भजन सिंह घारू
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