हम उन्हेँ अच्छे नहीं लगते।
हम जो पहने कच्छे , अच्छे नहीं लगते।
उपरी सितारों की चमक दमक है दमदार,
अन्दर है मैल दबी हुई, अच्छे नहीं लगते॥
ऊपर की चमड़ी का रंग साफ- सुथरा ,
अन्दर है कालिख पुती हुई, अच्छे नहीं लगते॥
हम जो आह भरे, उनको सहन नहीं होता,
वो जो सरेआम चिंघाड़े ,अच्छे नहीं लगते॥
घिट जाये पूरा सामान जनता का,
हम जो सुखी डकार मारे ,अच्छे नहीं लगते॥
जरा सी पीर से कराह उठाते हैं वो ,
हम पर वारों की करे बोछार, अच्छे नहीं लगते॥
कहतें हैं उनकी बात बड़ा दम है,
हम जो बोले तो लगे बकवास ,अच्छे नहीं लगते॥
सव रचित -भजन सिंह घारू
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