Friday, July 22, 2011

श्री हर मंदिर साहिब अमृतसर (पंजाब )

botal mai ja baithi

बोतल में जा बैठी ,
तुम फिर बोतल में जा बैठी, दरवाजा तों बंद किया था जालिम,
किस दरवाजे से एस में आ बैठी.
नशा तेरी आँखों का औझल नहीं हुआ,
स्पर्श तेरे आँचल का औझल नहीं हुआ,
फिर क्यों रूठी, और दूर जा बैठी..
रह-रह कर तेरी बातें व् हसीन लम्हें याद आते हैं,
समझ पाय न तुझे , कद्र न कर पाय ,पछताते हैं,
 लग जा एक बार होठों पर, आ बैठी..
तुम फिर बोतल में जा बैठी..
तुम फिर बोतल में जा बैठी..
द्वारा-भजन सिंह घारू