Monday, May 9, 2011

वो लम्हा,

वो लम्हा ,
फिर वो लम्हा सपने में आ टपका, मन विचलित हुआ।
कहीं पुन ऐसा हुआ तो क्या होगा।
चिंता में डूबी नाव , चेहरे का रंग बदल गया,
मित्र भी पराये से लगते हैं, पराये भी धुत्कारतें हैं।
कहाँ से आ गया दिमाग चाटने को,
जेब मुद्राविहीन, नगर का चक्र कटा, दोटू टका दबाये हुए,
कितनी बार चक्षु भीगे, गिनके तो उदासी होती है।
अरदास उस से यहीं करूगां , ऐसे सपनो का क्रम टूटे, कहीं सच हो गया तो,
मन चिंता में डूब गया।
चेहरे का रंग फीका होने लगा।
सपने तो सपने हैं, न अपने हैं,बस सपने हैं॥
सव रचित-भजन सिंह घारू

Sunday, May 8, 2011

चीखं

चीखं ,
संभाले रखूं चीख मेरी आखरी बची हुई।
ये गई ,वो गई, हर चीख मेरी सच्ची हुई॥
कोई खा रहा था, किसी का पेट काटकर,
कोई नहा रहा था, बरसात जो बची हुई॥
चल रहे थे साथ मिलकर, एक आगे सटक गया,
बाकि हाथ मलते रहे, दूजे कहें ये अच्छी हुई॥
हमें तो अपनों ने मारा, गेरों में कहाँ दम था ,
पता भी न चला , न पहचान उबरी दबी हुई॥
चीखों में चीखे निकलती रही, हर बार क़यामत आती रही,
शमशान से दुरी कम न रही, बस बर्बाद कभी न कमी हुई॥
संभालें रखूं चीख मेरी आखरी बची हुई।
ये गई, वो गई, हर चीख मेरी सच्ची हुई॥
सव-रचित- भजन सिंह घारू

तीन मंत्रियों की दरकार

तीन मंत्रियों की दरकार,
कहिये जनाब , आपकी है सरकार।
मेरे तीन मंत्री हैं ! है दरकार, है दरकार॥
मार्ग बदला ,सिंदांत छोड़ा, साथ पकड़ा है तुम्हारा।
तुम चाल चलो, हर बार लात खाय , यहीं किस्मत है हमारा॥
तुम्हारी सत्ता ही बदल देगें, हर बंद है कामकाज।
मेरे तीन मंत्री हैं, है दरकार, है दरकार॥
मेरे शेत्र में विचरण करना हो, इनका साथ जरुरी है।
दशिन की गंगा में दुबकी, तो खैरात बटाना जरुरी है।
नंबर एक बन्दा हो तेरा, तो शर्म न करो सरकार॥
मेरे तीन मंत्री है, है दरकार, है दरकार॥
सव-रचित -भजन सिंह घारू