Friday, April 22, 2011

आ रे बदरा

आ रे बदरा ,
आ रे बदरा आ रे बदरा तू जल्दी से प्यास बुझा।
न हम को तू तडपा, बस जल्दी से तू आ॥
धरती का जीव तड़प रहा है,
ये जंगल भी जल रहा है,
मानव बहुत हो मजबूर चला है,
अब तो साथ निभा ॥ बस जल्दी से तू आ॥
सावन सुखा-सखा है,
उसने भी क्या देखा है,
चारों ओर ख़ामोशी है,
अपना ही राग सुना॥ बस जल्दी से तू आ॥
अब बहुत हुआ न कहर ढा,
कुछ तो रहम कर न तडपा ,
हम बन्दे हैं तेरे उस प्रीतम के,
जिसका तुम पर प्यार फला॥ बस जल्दी से तू आ॥
द्वारा रचना -भजन सिंह घारू

क्या कहिये

क्या कहिये ,
मेरी तरह जो तुम भी रोओं , शान तुमारी क्या कहिये।
ठुमक-ठुमक तुम चलते जाओ ,आन तुमारी क्या कहिये॥
उलझी लत ये,कोई देखें, जान तुम्हारी क्या कहिये॥
सीना जो धक्-धक् धडके है,परेशान बेचारी क्या कहिये॥
सौ-सौ चूहे खाएके बिल्ली चली है, सरेआम बेचारी क्या कहिये॥
बांटे हैं सब कुछ , लगता न फिर कुछ , सामान बेचारी क्या कहिये॥
घूस खोरी पर ये वो जा बैठे, इमान बे -चारी क्या कहिये॥
सब के मालिक समझे अब तो, भगवान बे-चारी क्या कहिये॥
स्व-रचित द्वारा- भजन सिंह घारू

दुःख

दुःख ,
मैंने अपनी स्व रचित रचनों को मरकजी महकमें से छापने की गुजारिश की थी , परन्तु उसने एस टिपणी के साथ लौटा दी की यह मानने लायक नहीं है भगवान ऐसी सोच वालो का जल्दी ही इतजाम करेगा जो नाग की तरह कुंडली मरे बैठे हैं । मैं ऐसी घटिया सोच के लोगो की कड़े शब्दों मैं निंदा करता हूँ। अगर वे इसे पढ़े तों अपना मुंह अयने में देख कर ढक ले ताकि शर्म से लजित न हों।
द्वारा-भजन सिंह घारू