Sunday, February 27, 2011

भर्ष्टाचार

भर्ष्टाचार पुरे विशव को जंग की तरह खाए जा रहा है। इससे निपटने के लिए व्यक्ती का जागरूक होना जरूरी है । ताली हमेशा दोनों हाथों से ही बजती है। अगर देने वाला नहीं होगा तो लेने वाला कहाँ से लेगा । इसके विपरीत लोग अधिक मतलबी हो गए है। थोड़ा त्याग तो करना ही पड़ेगा। तभी कहीं नाक मे नकेल लग पायगी । यह सोच लिया जाय की सरकार ही सब कुछ करे । मेरा ख्याल है यह सरकार के साथ जादती होगी। खाली मन मे पुलाव बनाने से कुछ नहीं हो सकता । थोड़ी सर-दर्दी तो उठानी ही चाहिए तभी हम सब का हित हो सकता है।
द्वारा-भजन सिंह घारू

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