Thursday, October 6, 2011

भक्ति आन्दोलन ,


भक्ति का अर्थ उपासना करना होता है. अवम उपासना करने वाले व्यक्ति को ही भक्त कहा जाता है. वह भक्त अपने इस्ट देव व् उपास्य देव के प्रति भक्ति भावना रखता है. इसी प्रकार भक्त अपने इस्ट देव से अपनी मुक्ति प्राप्त करने का प्रयास करता है.

भागवत गीता में मुक्ति के तीन मार्गों का उलेख मिलता है-

१.ज्ञान मार्ग , २. कर्म मार्ग, ३.भक्ति मार्ग.

भक्ति मार्ग-
भगवन्न की ,व् प्रभु की तथा अपने इश्वरकी भक्ति का मार्ग बतलाता है. यह उसके भजन करने से तथा उपासना करने से प्राप्त होता है. सब से पहले उपासना करना हिन्दू धर्म को मजबूत करने के लिए भक्ति आन्दोलन का प्रमुख आधार था .स्वामी शंकराचार्य ज्ञान मार्ग के प्रमुख उपासक थे.

८वि सदीं तक हिन्दू धर्म ठोस व् व्यापक दार्शनिक आधार करता रहा ताकि लोग बोद्ध धर्म की और आकर्षित न हो. परन्तु शंकराचार्य की जटिलताओं को भारतीय जनता समझ नहीं पी. अवम यह जन आन्दोलन का रूप न ले सके.

भक्ति आन्दोलन की आवश्यकता -

११वि सदीं शुरू लेकर से १६वि सदीं अंत तक भक्ति आन्दोलन जारी रहा-:
(१)- उपासकों को आशा की किरण न दिखाई देने के कारण हिन्दू धर्म के अनुयाई भक्ति या भगवान की शरण में जाने को ही उचित मानने लगे.
(२) भक्ति आन्दोलन को चलने वालों की अधिक सकिर्यता से भक्ति आन्दोलन न अधिक जोर पकड़ा.
(३)सूफी संतों को प्रभाव- भक्ति आन्दोलन को चलने वाले प्रेम व् भक्ति भाव से ईश्वर तक जाने प्रमुख मानते थे.तथा सूफी संतों के आपसी भाई-चारे व् भक्ति भाव से जनता भक्ति आन्दोलन की ओर आकर्षित हुई.
(४) भारतीय जातियों में बढ़ते दुरा-भाव व् हीन भावना को भी भक्ति आन्दोलन को बढावा मिला .
भक्ति आन्दोलन के प्रमुख संत-

भक्ति आन्दोलन में दो तरह के संत हुए हैं-:

१.सूफी संत- ख्वाजमुदीन चिस्ती, बाबा फरीद, आदि.
२.भरिय संत-कबीर दास, सतगुरु रविदास, गुरु नानक देव, रामानुचार्य , रामानान्द्चार्य, बल्लभाचार्य, चैतन्य महाप्रभु, नामदेव, आदि.



द्वारा भजन सिंह घारू

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