Tuesday, September 3, 2013

आर्यों में जाति व्यवस्था

आर्यों में जाति व्यवस्था



प्रत्येक श्रेष्ठ और सुसभ्य मनुष्य आर्य है | अपने आचरण, वाणी और कर्म में वैदिक सिद्धांतों का पालन करने वाले, शिष्ट, स्नेही, कभी पाप कार्य न करनेवाले, सत्य की उन्नति और प्रचार करनेवाले, आतंरिक और बाह्य शुचिता इत्यादि गुणों को सदैव धारण करनेवाले आर्य कहलाते हैं |  ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र यह चार वर्ण वास्तव में व्यक्ति को नहीं बल्कि गुणों को प्रदर्शित करते हैं. प्रत्येक मनुष्य में ये चारों गुण (बुद्धि, बल, प्रबंधन, और श्रम) सदा रहते हैं. आसानी के लिए जैसे आज पढ़ाने वाले को अध्यापक, रक्षा करने वाले को सैनिक, व्यवसाय करने वाले को व्यवसायी आदि कहते हैं वैसे ही पहले उन्हें क्रमशः ब्रह्मण, क्षत्रिय या वैश्य कहा गया और इनसे अलग अन्य काम करने वालों को शूद्र. अतः यह वर्ण व्यवस्था जन्म- आधारित नहीं है|
आजकल प्रचलित कुलनाम ( surname)  लगाने के रिवाज से इन वर्णों का कोई लेना-देना नहीं है | हमारे प्राचीन धर्मग्रन्थ रामायण, महाभारत या अन्य ग्रंथों में भी इस तरह से प्रथम नाम- मध्य नाम- कुलनाम लगाने का कोई चलन नहीं पाया जाता है और न ही आर्य शब्द किसी प्रकार की वंशावली को दर्शाता है|  निस्संदेह, परिवार तथा उसकी पृष्टभूमि का किसी व्यक्ति को संस्कारवान बनाने में महत्वपूर्ण स्थान है परंतु इससे कोई अज्ञात कुल का मनुष्य आर्य नहीं हो सकता यह तात्पर्य नहीं है | हमारे पतन का एक प्रमुख कारण है मिथ्या जन्मना जाति व्यवस्था जिसे हम आज मूर्खता पूर्वक अपनाये बैठे हैं और जिसके चलते हमने अपने समाज के एक बड़े हिस्से को अपने से अलग कर रखा है – उन्हें शूद्र या अछूत का दर्जा देकर – महज इसलिए कि हमें उनका मूल पता नहीं है | यह अत्यंत खेदजनक है | आर्य शब्द किसी गोत्र से भी सरोकार नहीं रखता | गोत्र का वर्गीकरण नजदीकी संबंधों में विवाह से बचने के लिए किया गया था | प्रचलित कुलनामों का शायद ही किसी गोत्र से सम्बन्ध भी हो |
आर्य शब्द श्रेष्टता का द्योतक है | और किसी की श्रेष्ठता को जांचने में पारिवारिक पृष्ठभूमि कोई मापदंड हो ही नहीं सकता क्योंकि किसी चिकित्सक का बेटा केवल इसी लिए चिकित्सक नहीं कहलाया जा सकता क्योंकि उसका पिता चिकित्सक है, वहीँ दूसरी ओर कोई अनाथ बच्चा भी यदि पढ़ जाए तो चिकित्सक हो सकता है. ठीक इसी तरह किसी का यह कहना कि शूद्र ब्राह्मण नहीं बन सकता – सर्वथा गलत है |
ब्राह्मण का अर्थ है ज्ञान संपन्न व्यक्ति और जो शिक्षा या प्रशिक्षण के अभाव में ब्राह्मण, क्षत्रिय या वैश्य बनाने की योग्यता न रखता हो – वह शूद्र है |  परंतु शूद्र भी अपने प्रयत्न से ज्ञान और प्रशिक्षण प्राप्त करके वर्ण बदल सकता है | ब्राह्मण वर्ण को भी प्राप्त कर सकता है | द्विज – अर्थात् जिसने दो बार जन्म लिया हो | जन्म से तो सभी शूद्र समझे गए हैं | ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य इन तीन वर्णों को द्विज कहते हैं क्योंकि विद्या प्राप्ति के उपरांत योग्यता हासिल करके वे समाज के कल्याण में सहयोग प्रदान करते हैं | इस तरह से इनका दूसरा जन्म ‘ विद्या जन्म’ होता है | केवल माता-पिता से जन्म प्राप्त करनेवाले और विद्याप्राप्ति में असफ़ल व्यक्ति इस दूसरे जन्म ‘ विद्या जन्म ‘ से वंचित रह जाते हैं – वे शूद्र हैं |  अतः यदि ब्राह्मण पुत्र भी अशिक्षित है तो वह शूद्र है और शूद्र भी अपने निश्चय से ज्ञान, विद्या और संस्कार प्राप्त करके ब्राह्मण, क्षत्रिय या वैश्य बन सकता है | इस में माता- पिता द्वारा प्राप्त जन्म का कोई संबंध नहीं है |

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