Thursday, April 27, 2017

संविधान सभा

संविधान सभा के सदस्यों की सूची
(
नवंबर, 1949 की स्थिति के अनुसार)

मद्रास
बम्बई
पश्चिम बंगाल
संयुक्त प्रांत
पूर्वी पंजाब
बिहार
मध्य प्रांत और बरार
असम
उड़ीसा
दिल्ली
अजमेर - मारवाड़
कूर्ग
मैसूर
जम्मू और कश्मीर
त्रावणकोर - कोचीन
मध्य भारत
सौराष्ट्र
राजस्थान
पटियाला एवं पूर्वी पंजाब रियासत संघ
बम्बई की रियासतें
उड़ीसा की रियासतें
मध्य प्रांत की रियासतें
संयुक्त प्रांत की रियासतें
मद्रास की रियासतें
विंध्य प्रदेश
कूचबिहार
त्रिपुरा और मणिपुर
भोपाल
कच्छ
हिमाचल प्रदेश
मद्रास
1.ओ.वी.अलगेसन ,    2.श्रीमतीअम्मू,     3.स्वामिनाथन,      4.एम.अनंतशयनम, 5.अय्यंगार , 6.मोतूरी,    7.सत्यनारायण ,   8.श्रीमतीदाक्षायनी, 9.वेलायुदन , 10.श्रीमतीजी.दुर्गाबाई , 11.कलावेंकटराव, 12.एन.गोपालस्वामी, 13.अय्यंगार , 14.डी. गोविंद दास, 15.रेवरेन्ड जेरोम डी सूज़ा ,16.पी. कक्कन,    17. के. कामराज,  18. वी.सी. केशवराव, 19.टी.टी. कृष्णामाचारी , 20. अलादि कृष्णास्वामी अय्यर , 21.एल. कृष्णास्वामी भारती ,  22.पी. कुन्हीरामन , 23.एम.तिरुमाला राव , 24.वी.आई. मुनिस्वामी पिल्ले ,  25.एम.ए. मुत्थय्या चेट्टिया ,  26.वी. नडीमुत्थु पिल्लई , 27.एस. नागप्पा , 28.पी.एल. नरसिंह राजू , 29.बी. पट्टाभि सीतारामय्या , 30.सी. पेरुमलस्वामी रेड्डी, 31.टी. प्रकाशम , 32.एस.एच. प्रेटर ,   33.बोब्बिलि के राजा श्वेतचलपति रामकृष्ण रंगाराव , 34. आर.के. षण्‌मुखम चेट्टी , 35.टी.ए. रामलिंगम चेट्टियार , 36.रामनाथ गोयनका , 37.ओ.पी. रामास्वामी रेड्डियार , 38.एन.जी. रंगा , 39.एन. संजीवा रेड्डी , 40.के. संतानम,   41.बी. शिवराव , 42 कल्लूर सुब्बा राव , 43.यू. श्रीनिवास मल्लय्या ,   44.पी. सुब्बरायन,   45.सी. सुब्रमण्यम ,   46.वी. सुब्रमण्यम ,  47.एम.सी. वीरबाहु ,  48. पी.एम. वेलयुदपाणि , 49.ए.के. मेनन , 50.टी.जे.एम. विल्सन ,  51. मोहम्मद इस्माइल सादिब ,  52.के.टी.एम. अहमद इब्राहिम
महबूब अली बेग साहिब बहादुर , 53.बी. पॉकर साहिब बहादुर
बम्बई
बालचन्द्र महेश्वर गुप्ते ,श्रीमती दंसा मेहता ,हरि विनायक पाटस्कर ,बी.आर. अंबेडकर,जोसफ अल्बन डी. सूज़ा ,कन्हैयालाल नानाभाई देसाई ,केशवराव मारुतिराव जे.धे. ,खंडूभाई कासनजी देसाई ,बाल गंगाधर खेर
एम.आर. मसानी ,के.एम. मुन्शी ,नरहरि विष्णु गाडगिल,एस. निजलिंगप्पा,एस. के. पाटिल,रामचन्द्र मनोहर नलवदे ,आर.आर. दिवाकर,शंकरराव देव ,जी.वी. मावलंकर,वल्लभभाई जे. पटेल,अब्दुल कादर मोहम्मद शेख ,ए.ए. खान
पश्चिमबंगाल
मनमोहन दास ,अरूण चंद्र गुहा,लक्ष्मी कांत मैत्र,मिहिर लाल चट्टोपाध्याय,सतीश चन्द्र सामन्त, सुरेश चन्द्र मजूमदार , उपेन्द्रनाथ बर्मनप्रभुदयाल हिम्मतसिंगका, बसन्त कुमार दास, श्रीमती रेणुका रे ,एच.सी. मुखर्जी ,सुरेन्द्र मोहन घोष, श्यामा प्रसाद मुखर्जी ,अरी बहादुर गुरूंगआर.ई प्लेटेल ,के.सी. नियोगी ,राधिब एहसान ,जसीमुद्दीन अहमद ,नजीरूद्दीन अहमद, अब्दुल हमीद ,अब्दुल हलीम गजनवी
संयुक्त प्रांत
अजीत प्रसाद जैन , अलगूराम शास्त्री ,बालकृष्ण शर्मा, बंशीधर मिश्रा, भगवानदीन, दामोदर स्वरूप सेठ
दयाल दास भगतधर्मप्रकाश,   ए. धर्मदासआर.वी. धुलेकरफिरोज़ गांधी ,गोपाल नारायण, कृष्ण चंद्र शर्मा ,गोविन्द बल्लभ पन्त,गोविन्द मालवीय,   हरगोविन्द पन्त, हरिद नाथ शास्त्रीहृदय नाथ कुंजरू
जसपतराय कपूर ,जगन्नाथ बख्शसिंहजवाहर लाल नेहरू, जोगेन्द्र सिंह, जुगल किशोर,ज्वाला प्रसाद श्रीवास्तव, बी. वी. केसकर, श्रीमती कमला चौधरी,कमलापति तिवारी, जे.बी. कृपलानी ,महावीर त्यागी
खुरशीद लाल ,मसूरिया दीन,मोहन लाल सक्सेना, पदमपत सिंघानिया,फूल सिंह, परागी लाल ,श्रीमती पूर्णिमा बैनर्जी , पुरुषोत्तमदास टंडन,हीरा वल्लभ त्रिपाठी, राम चन्द्र गुप्ता ,शिब्बन लाल सक्सेना
सतीश चन्द्र ,जॉन मथाई,श्रीमती सुचेता कृपलानी, सुन्दर लाल,वेंकटेश नारायण तिवारी ,मोहनलाल गौतम
विश्वंभर दयाल त्रिपाठी ,बेगम ऐज़ाज़ रसूल, हैदर हुसैन,हसरत मोहानी ,अबुल कलाम आज़ाद,मुहम्मद इस्माइल खान ,रफ़ी अहमद किदवई ,मोहम्मद हिफ्ज़ुर्रहमान
पूर्वी पंजाब
1.बक्शी टेकचंद ,  2.जयरामदास दौलतराम ,   3.ठाकुरदास भार्गव ,  4.बिक्रमलाल सोंधी ,  5.यशवन्त राम ,
6.रणबीर सिंह,  7.अचिन्त राम,  8.नंद लाल ,  9.सरदार बलदेव सिंह ,10.ज्ञानी गुरूमुख सिंह मुसाफिर , 11.सरदार हुकम सिंह , 12.सरदार भूपिन्दर सिंह मान
बिहार
1.अमियो कुमार घोष ,   2.अनुग्रह नारायण सिन्हा, 3.बनारसी प्रसाद ळाुनळाुनवाला
4.भागवत प्रसाद ,  5.बोनीफेस लाकरा,    6.ब्रजेश्वर प्रसाद,  7.चंडिका राम,  8.के.टी. शाह ,9.देवेन्द्रनाथ सामन्त ,10.दीपनारायण सिन्हा ,11.गुप्तनाथ सिंह ,12.यदुबंस सहाय ,13.जगत नारायण लाल , 14.जगजीवन राम ,15.जयपाल सिंह , 16.कामेश्वर सिंह, दरभंगा ,17.कमलेश्वरी प्रसाद यादव
18.महेश प्रसाद सिन्हा ,19.कृष्ण बल्लभ सहाय ,20.रघुनन्दन प्रसाद ,21.राजेन्द्र प्रसाद ,22.रामेश्वर प्रसाद सिन्हा ,23.रामनारायण सिंह ,24.सच्चिदानंद सिन्हा ,25.सारंगधर सिन्हा ,26.सत्यनारायण सिन्हा , 27.बिनोदानन्द ळाा ,28.पी.के. सेन ,29.श्रीकृष्ण सिन्हा ,30.श्रीनारायण महथा ,31.श्यामानन्दन सहाय
32.हुसैन इमाम ,33.सैयीद जफर इमाम ,34.लतिफुर्रहमान ,35.मोहम्मद ताहिर ,36.ताजमुल हुसैन
मध्य प्रांत और बरार
1.रघुवीर ,2.राजकुमारीअमृतकौर ,3.बी. ए. मंडलोई ,4.बृजलाल नंदलाल बियानी ,5.ठाकुर छेदीलाल ,
6.सेठ गोविन्ददास ,7.हरी सिंह गौड़,   8.हरि विष्णु कामथ,  9.हेमचन्द्र जागोबाजी खांडेकर
10.घनश्याम सिंह गुप्ता ,11.लक्ष्मण श्रवण भटकर ,12.पंजाबराव शामराव देशमुख ,13.रवि शंकर शुक्ल
14.आर. के. सिधवा ,  15.शंकर त्र्यंबक धर्माधिकारी ,16.फ्रैन्क एन्थॉनी ,17.काज़ी सैयद करीमुद्‌दीन
असम
1.निबारण चन्द्र लश्कर ,    2.धरनीधर बासु मातारी ,    3.गोपीनाथ बारदोलोई ,
4.जे.जे.एम. निकल्सरॉय ,5.कुलाधार चलीहा,      6.रोहिणी कुमार चौधरी
7.मुहम्मद सादुल्ला ,    8.अब्दुर रौफ
उड़ीसा
1.बी. दास ,     2.विश्‍वनाथ दास,   3.कृष्ण चन्द्र गजपति नारायण देव,  4.पार्लाकिमेडी
5.हरेकृष्ण मेहताब,6.लक्ष्मीनारायण साहु ,7.लोकनाथ मिश्र, 8.नंदकिशोर दास,9.राजकृष्ण बोस
10.शान्तनु कुमार दास
दिल्ली
देशबन्धु गुप्त
अजमेर - मारवाड़
मुकुट बिहारी लाल भार्गव
कूर्ग
सी.एम. पुनांचा
मैसूर
के. चेंगलराय रेड्डी ,टी. सिद्धलिंगय्या ,एच.आर. गुरुव रेड्डी ,एस.वी. कृष्ण मूर्ति राव
के. हनुमंतय्या ,एच. सिद्धवीरप्पा ,टी. चन्नय्या
जम्मू और कश्मीर
शेख मुहम्मद अब्दुल्ला ,मोतीराम बैगड़ा , मिर्ज़ा मोहम्मद अफ़जल बेग ,
मौलाना मोहम्मद सईद मसूदी
त्रावणकोर - कोचीन
ए. भानु पिल्लई ,आर. शंकर ,पी.एस. नटराज पिल्लई ,श्रीमती ऐनी मेस्करीन
के.ए. मोहम्मद ,पी.टी. चैकों,पी. गोविन्द मेनन
मध्य भारत
वी.एस. सरवटे , बृजराज नारायण ,गोपीकृष्ण विजयवर्गीय ,राम सहाय ,कुसुम कान्त जैन ,राधा वल्लभ विजयवर्गीय ,सीताराम एस. जाजू
सौराष्ट्र
बलवन्त राय गोपालजी मेहता ,जयसुखलाल हाथी ,अमृतलाल विट्ठलदास ठक्कर ,चिमनलाल चाकूभाई शाह ,सामलदास लक्ष्मीदास गाँधी
राजस्थान
वी.टी. कृष्णामाचार्य , हीरालाल शास्त्री , सरदार सिंहजी, खेतड़ी ,जसवन्त सिंहजी ,राज बहादुर
माणिक्य लाल वर्मा , गोकुल लाल असावा ,रामचन्द्र उपाध्याय,बलवन्त सिंह मेहता ,
दलेल सिंह ,जयनारायण व्यास
पटियाला एवं पूर्वी पंजाब रियासत संघ
रणजीत सिंह , सोचेत सिंह , भगवन्त रॉय
बम्बई की रियासतें
विनायकराव बालशंकर वैद्य ,बी.एन.मुनावल्ली ,गोकुलभाई दौलतराम भट्ट ,जीवराज नारायण मेहता
गोपालदास ए. देसाई ,प्राणलाल ठाकुरलाल मुंशी ,बी.एच. खर्डेकर ,रत्नप्पा भरमप्पा कुम्भार
उड़ीसा की रियासतें
लाल मोहन पति ,एन. माधव राव ,राज कुंवर ,सारंगधर दास ,युधिष्ठिर मिश्र
मध्य प्रांत की रियासतें
आर.एल. मालवीय ,किशोरी मोहन त्रिपाठी , रामप्रसाद पोटाई
संयुक्त प्रांत की रियासतें
बी.एच. ज़ैदी
कृष्णा सिंह
मद्रास की रियासतें
वी. रामैय्या
विंध्य प्रदेश
अवधेश प्रताप सिंह ,शम्भूनाथ शुक्ल ,राम सहाय तिवारी , मन्नूलालजी द्विवेदी
कूचबिहार
हिम्मत सिंह के. माहेश्वरी
त्रिपुरा और मणिपुर
गिरिजा शंकर गुहा
भोपाल
लाल सिंह
कच्छ
भवानी अर्जुन खिमजी
हिमाचल प्रदेश
वाय.एस. परमार 
संविधान सभा में पहला दिन
संविधान सभा की पहली बैठक 9 दिसम्बर, 1946 को नई दिल्ली के कॉन्स्टिट्यूशन हॉल, जिसे अब संसद भवन के केंद्रीय कक्ष के नाम से जाना जाता है, में हुई। इस अवसर के लिए कक्ष को मनोहारी रूप से सजाया गया था, ऊॅची छत से और दीवारगीरों से लटकती हुई चमकदार रोशनी की लड़ियाँ एक नक्षत्र के समान सुशोभित हो रही थीं। उत्साह और आनन्द से अभिभूत होकर माननीय सदस्यगण अध्यक्ष महोदय की आसंदी के सम्मुख अर्धवृत्ताकार पंक्तियों में विराजमान थे। विद्युत के द्वारा गरम रखी जा सकने वाली मेंजों को हरे कालीन से आवृत ढ़लवाँ चबूतरे पर लगाई गई थी। पहली पंक्ति में जवाहरलाल नेहरू, मौलाना अबुल कलाम आज़्ााद, सरदार वल्लभभाई पटेल, आचार्य जे.बी.कृपलानी, डॉ राजेन्द्र प्रसाद, श्रीमती सरोजिनी नायडू, श्री हरे कृष्ण महताब, पं. गोविन्द वल्लभ पंत, डॉ बी. आर. अम्बेडकर, श्री शरत चंद्र बोस, श्री सी. राजगोपालाचारी और श्री एम. आसफ अली शोभायमान थे। नौ महिलाओं समेत दो सौ सात सदस्य उपस्थित थे।
उद्घाटन सत्र पूर्वाह्न 11.00 बजे आचार्य कृपलानी द्वारा संविधान सभा के अस्थाई अध्यक्ष डा. सच्चिदानंद सिन्हा का परिचय कराने से आरंभ हुआ। डा. सिन्हा और अन्य
सदस्यों का अभिवादन करते हुए आचार्य जी ने कहा : "जिस प्रकार हम प्रत्येक कार्य ईश्वर के आशीर्वाद से प्रारंभ करते हैं, हम डॉ सिन्हा से इन आशीर्वादों का आह्वान करने की प्रार्थना करते हैं ताकि हमारा कार्य सुचारु रूप से आगे बढ़े। अब, आपकी ओर से मैं एक बार फिर डा. सिन्हा को पीठासीन होने के लिए आमंत्रित करता हूं।"
अभिनन्दन के बीच पीठासीन होते हुए डॉ. सिन्हा ने विभिन्न देशों से प्राप्त हुए शुभकामना संदेशों का वाचन किया। अध्यक्ष महोदय के उद्घाटन भाषण और उपाध्यक्ष के नाम-निर्देशन के पश्चात् सदस्यों से अपने परिचय-पत्रों को प्रस्तुत करने का औपचारिक निवेदन किया गया। समस्त 207 सदस्यों द्वारा अपने-अपने परिचय-पत्र प्रस्तुत करने और रजिस्टर में हस्ताक्षर करने के पश्चात् पहले दिन की कार्यवाही समाप्त हो गई। कक्ष की सतह से लगभग 30 फुट ऊपर दीर्घाओं में बैठकर पत्रकारों और दर्शकों ने इस स्मरणीय कार्यक्रम को प्रत्यक्ष रूप से देखा। आकाशवाणी के दिल्ली केन्द्र ने संपूर्ण कार्यवाही का एक संयुक्त ध्वनि चित्र प्रसारित किया।
कतिपय तथ्य
संविधान सभा ने स्वतंत्र भारत के लिए संविधान का प्रारुप तैयार करने के ऐतिहासिक कार्य को लगभग तीन वर्षों (दो वर्ष, ग्यारह माह और सत्रह दिन) में पूरा किया। इस अवधि के दौरान इसने ग्यारह सत्र आयोजित किए जो कुल 165 दिनों तक चले। इनमें से 114 दिन संवधिान के प्रारुप पर विचार-विमर्श में बीत गए। संविधान सभा का संघटन केबिनेट मिशन के द्वारा अनुशंसित योजना के आधार पर हुआ था जिसमें सदस्यों को प्रांतीय विधान सभाओं के सदस्यों द्वारा अप्रत्यक्ष चुनाव के द्वारा चुना गया था। व्यवस्था इस प्रकार थी - (i) 292 सदस्य प्रांतीय विधान सभाओं के माध्यम से निर्वाचित हुए; (ii) 93 सदस्यों ने भारतीय शाही रियासतों का प्रतिनिधित्व किया; (iii) चार सदस्यों ने मुख्य आयुक्त प्रांतों का प्रतिनिधित्व किया। इस प्रकार सभा के कुल सदस्य 389 हुए। तथापि, 3 जून, 1947 की माउन्टबेटेन योजना के परिणामस्वरूप विभाजन के पश्चात् पाकिस्तान के लिए एक पृथक संविधान सभा का गठन हुआ और कुछ प्रांतों के प्रतिनिधियों की संविधान सभा से सदस्यता समाप्त हो गई। जिसके फलस्वरूप सभा की सदस्य संख्या घटकर 299 हो गई। 13 दिसंबर, 1946 को पंडित जवाहरलाल नेहरु ने उद्देश्य संकल्प उपस्थित किया।
1. यह संविधान सभा भारतवर्ष को एक स्वतंत्र संप्रभु तंत्र घोषित करने और उसके भावी शासन के लिए एक संविधान बनाने का दृढ़ और गम्भीर संकल्प प्रकट करती है और निश्चय करती है।
2. जिसमें उन सभी प्रदेशों का एक संघ रहेगा जो आज ब्रिटिश भारत तथा भारतीय राज्यों के अंतर्गत आने वाले प्रदेश हैं तथा इनके बाहर भी हैं और राज्य और ऐसे अन्य प्रदेश जो आगे स्वतंत्र भारत में सम्मिलित होना चाहते हों; और
3. जिसमें उपर्युक्त सभी प्रदेशों को, जिनकी वर्तमान सीमा (चौहदी) चाहे कायम रहे या संविधान-सभा और बाद में संविधान के नियमानुसार बने या बदले, एक स्वाधीन इकाई या प्रदेश का दर्जा मिलेगा व रहेगा। उन्हें वे सब शेषाधिकार प्राप्त होंगे जो संघ को नहीं सौंपे जाएंगे और वे शासन तथा प्रबंध सम्बन्धी सभी अधिकारों का प्रयोग करेंगे और कार्य करेंगे सिवाय उन अधिकारों और कार्यों के जो संघ को सौंपे जाएंगे अथवा जो संघ में स्वभावत: निहित या समाविष्ट होंगे या जो उससे फलित होंगे; और
4. जिससे संप्रभु स्वतंत्र भारत तथा उसके अंगभूत प्रदेशों और शासन के सभी अंगों की सारी शक्ति और सत्ता (अधिकार) जनता द्वारा प्राप्त होगी; और
5. जिसमें भारत के सभी लोगों (जनता) को राजकीय नियमों और साधारण सदाचार के अध्यधीन सामाजिक, आर्थिक व राजनैतिक न्याय के अधिकार, वैयक्तिक स्थिति व अवसर की तथा कानून के समक्ष समानता के अधिकार और विचारों की, विचारों को प्रकट करने की, विश्वास व धर्म की, ईश्वरोपासना की, काम-धन्धे की, संघ बनाने व काम करने की स्वतंत्रता के अधिकार रहेंगे और माने जाएंगे; और
6. जिसमें सभी अल्प-संख्यकों के लिए, पिछड़े व आदिवासी प्रदेशों के लिए तथा दलित और अन्य पिछड़ें वर्गों के लिए पर्याप्त सुरक्षापाय रहेंगे; और 7. जिसके द्वारा इस गणतंत्र के क्षेत्र की अखंडता (आन्तरिक एकता) रक्षित रहेगी और जल, थल और हवा पर उसके सब अधिकार, न्याय और सभ्य राष्ट्रों के नियमों के अनुसार रक्षित होंगे; और
8. यह प्राचीन देश संसार में अपना उचित व सम्मानित स्थान प्राप्त करता है और संसार की शान्ति तथा मानव जाति का हित-साधन करने में अपनी इच्छा से पूर्ण योग देता है।
यह संकल्प संविधान सभा द्वारा 22 जनवरी, 1947 को सर्वसम्मति से स्वीकार किया गया था। 14 अगस्त, 1947 की देर रात सभा केन्द्रीय कक्ष में समवेत हुई और ठीक मध्यरात्रि में स्वतंत्र भारत की विधायी सभा के रूप में कार्यभार ग्रहण किया।

29
अगस्त, 1947 को संविधान सभा ने भारत के संविधान का प्रारूप तैयार करने के लिए डॉ. बी. आर. अम्बेडकर की अध्यक्षता में प्रारुप समिति का गठन किया। संविधान के प्रारूप पर विचार-विमर्श के दौरान सभा ने पटल पर रखे गए कुल 7,635 संशोधनों में से लगभग 2,473 संशोधनों को उपस्थित किया, परिचर्चा की एवं निपटारा किया।

26
नवंबर, 1949 को भारत का संविधान अंगीकृत किया गया और 24 जनवरी, 1950 को माननीय सदस्यों ने उस पर अपने हस्ताक्षर किए। कुल 284 सदस्यों ने वास्तविक रूप में संविधान पर हस्ताक्षर किए। जिस दिन संविधान पर हस्ताक्षर किए जा रहे थे, बाहर हल्की-हल्की बारिश हो रही थी, इस संकेत को शुभ शगुन माना गया।

26
जनवरी, 1950 को भारत का संविधान लागू हो गया। उस दिन संविधान सभा का अस्तित्व समाप्त हो गया और इसका रुपांतरण 1952 में नई संसद के गठन तक अस्थाई संसद के रूप में हो गया।
संविधान सभा के सत्र

पहला सत्र
:
9-23 दिसंबर, 1946
दूसरा सत्र
:
20-25 जनवरी, 1947
तीसरा सत्र
:
28 अप्रैल - 2 मई, 1947
चौथा सत्र
:
14-31 जुलाई, 1947
पाँचवां सत्र
:
14-30 अगस्त
 1947
छठा सत्र
:
27 जनवरी, 1948
सातवाँ सत्र
:
4 नवंबर, 1948 - 8 जनवरी, 1949
आठवाँ सत्र
:
16 मई-16 जून, 1949
नौवां सत्र
:
30 जुलाई-18 सितंबर, 1949
दसवां सत्र
:
6-17 अक्टूबर, 1949
ग्यारहवां सत्र
:
14-26 नवंबर, 1949
[सभा 24 जनवरी, 1950 को पुन: समवेत हुई जब सदस्यों ने भारत के संविधान पर अपने हस्ताक्षर संलग्न किए]
संविधान सभा की महत्वपूर्ण समितियाँ और उनके अध्यक्ष

समिति का नाम
अध्यक्ष
प्रक्रिया विषयक नियमों संबंधी समिति
राजेन्द्र प्रसाद
संचालन समिति
राजेन्द्र प्रसाद
वित्त एवं स्टाफ समिति
राजेन्द्र प्रसाद
प्रत्यय-पत्र संबंधी समिति
अलादि कृष्णास्वामी अय्यर
आवास समिति
बी. पट्टाभि सीतारमैय्या
कार्य संचालन संबंधी समिति
के.एम. मुन्शी
राष्ट्रीय ध्वज संबंधी तदर्थ समिति
राजेन्द्र प्रसाद
संविधान सभा के कार्यकरण संबंधी समिति
जी.वी. मावलंकर
राज्यों संबंधी समिति
जवाहरलाल नेहरू
मौलिक अधिकार, अल्पसंख्यकों एवं जनजातीय और अपवर्जित क्षेत्रों संबंधी सलाहकारी समिति
वल्लभभाई पटेल
मौलिक अधिकारों संबंधी उप-समिति
जे.बी. कृपलानी
पूर्वोत्तर सीमांत जनजातीय क्षेत्रों और आसाम के अपवर्जित और आंशिक रूप से अपवर्जित क्षेत्रों संबंधी उपसमिति
गोपीनाथ बारदोलोई
अपवर्जित और आंशिक रूप से अपवर्जित क्षेत्रों (असम के क्षेत्रों को छोड़कर) संबंधी उपसमिति
ए.वी. ठक्कर
संघीय शक्तियों संबंधी समिति
जवाहरलाल नेहरु
संघीय संविधान समिति
जवाहरलाल नेहरु
प्रारूप समिति
बी.आर. अम्बेडकर
31 दिसंबर, 1947 की स्थिति के अनुसार भारत की संविधान सभा के सदस्यों की राज्य वार संख्या प्रांत - 229
क्रम
सं.
राज्य
सदस्यों की संख्या
1.
मद्रास
49
2.
बम्बई
21
3.
पश्चिम बंगाल
19
4.
संयुक्त प्रांत
55
5.
पूर्वी पंजाब
12
6.
बिहार
36
7.
मध्य प्रांत एवं बरार
17
8.
असम
8
9.
उड़ीसा
9
10.
दिल्ली
1
11.
अजमेर-मारवाड़
1
12.
कूर्ग
1



भारतीय रियासतें-70
1.
अलवर
1
2.
बड़ौदा
3
3.
भोपाल
1
4.
बीकानेर
1
5.
कोचीन
1
6.
ग्वालियर
4
7.
इंदौर
1
8.
जयपुर
3
9.
जोधपुर
2
10.
कोल्हापुर
1
11.
कोटा
1
12.
मयूरभंज
1
13.
मैसूर
7
14.
पटियाला
2
15.
रीवा
2
16.
त्रावणकोर
6
17.
उदयपुर
2
18.
सिक्किम और कूचबिहार समूह
1
19.
त्रिपुरा, मणिपुर और खासी रियासत समूह
1
20.
यू.पी. रियासत समूह
1
21.
पूर्वी राजपुताना/रियासत समूह
3
22.
मध्य प्रांत रियासत समूह (बुंदेलखंड और मालवा समेत)
3
23.
पश्चिमी भारत रियासत समूह
4
24.
गुजरात रियासत समूह
2
25.
दक्कन एवं मद्रास रियासत समूह
2
26.
पंजाब रियासत समूह I
3
27.
पूर्वी रियासत समूह I
4
28.
पूर्वी रियासत समूह II
3
29.
शेष रियासत समूह
4

कुल
299
संविधान सभा की पहली बैठक की 50वीं वर्षगांठ के अवसर पर भारत के महामहिम राष्ट्रपति डा. शंकर दयाल शर्मा का भाषण संसद भवन, नई दिल्ली सोमवार, 9 दिसंबर, 1996/18 अग्रहायण, 1918 (शक)
भारत की संविधान सभा की प्रथम बैठक की 50वीं वर्षगांठ के अवसर पर आयोजित इस समारोह में भाग लेते हुए मुळो अपार प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है।

मैं राष्ट्र की ओर से संविधान सभा के सभी सदस्यों को श्रद्धाभाव व्यक्त करता हूं। उनके सत्यनिष्ठ प्रयासों ने भारत को उन्नति एवं विकास के लिए आधारभूत वैधानिक तथा नैतिक ढांचा प्रदान किया।

मेरा यह भी सौभाग्य है कि मैं संविधान सभा के कुछ ऐसे सदस्यों का भी अभिनन्दन कर रहा हूं, जो आज यहां हमारे बीच विद्यमान हैं।

स्वाधीनता संघर्ष के लिए हमारे लम्बे संघर्ष के इतिहास में 9 अगस्त की भांति ही 9 दिसम्बर भी बहुत महत्वपूर्ण है। निश्चय ही, संविधान सभा के गठन की मांग स्वतंत्रता तथा स्वाधीनता के हमारे व्यापक उद्देश्य से वास्तविक रूप से जुड़ी थी। वर्ष 1929 में पूर्ण स्वराज के लिए पारित संकल्प ने सर्वव्यापी राष्ट्रवादी उत्साह उत्पन्न किया था, और और लोगों को स्वतंत्रता आन्दोलन में नये जोश के साथ भाग लेने के लिए उत्प्रेरित किया था। अपने भाग्य का स्वयं निर्णायक बनने की भारत की जनता की इस गहरी इच्छा की सुस्पष्ट अभिव्यक्ति में एक ऐसे लोकतांत्रिक संविधान की संरचना की भावना निहित थी, जो स्वाधीन भारत का स्वयं भारत की जनता द्वारा ही शासन किए जाने के लिए ढांचा प्रदान करता। स्पष्ट है कि ऐसा संविधान भारत की जनता के निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा ही तैयार किया जा सकता था। इसी अकाट्य तर्क के आधार पर ही पंडित जी ने संविधान सभा के गठन की आवाज उठाई थी। वर्ष 1934 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने यह प्रस्ताव स्वीकार किया, जो बाद में स्वाधीन भारत के लिये बनी राष्ट्रवादी कार्यसूची का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया। महात्मा गांधी ने स्वयं इस प्रस्ताव की पुष्टि की थी। "हरिजन" पत्रिका में 25 नवम्बर, 1939 को उन्होंने कहा था: [मैं उद्धृत करता हूं]

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पंडित जवाहरलाल नेहरू ने मुळो अन्य बातों के अलावा संविधान सभा के गठन से उत्पन्न प्रभावों का अध्ययन करने के लिए विवश किया है। जब उन्होंने कांग्रेस के संकल्पों में पहली बार इसे पेश किया, तो मैने इस विश्वास के साथ अपनी संतुष्टि कर ली कि उन्हें लोकतंत्र की तकनीकी बारीकियों के बारे में बेहतर जानकारी है। परन्तु मैं पूर्णत: संशय-मुक्त नहीं था। तथापि, वास्तविक तथ्यों ने मेरे सभी संशयों को दूर कर दिया है। और शायद इसी कारण मुळो इस प्रस्ताव के प्रति जवाहरलाल से भी अधिक समुत्साही बना दिया है।"

संविधान सभा के प्रस्ताव को साकार होने में सात वर्ष लग गये। यह ऐसा समय था, जब न केवल भारत में, अपितु समस्त विश्व में कुछ नाटकीय परिवर्तन हुए। 1942 में ऐतिहासिक "भारत छोड़ो आन्दोलन" भारत में अपने चरमोत्कर्ष पर था। अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य में, दूसरे विश्व युद्ध के बाद भौगोलिक एवं राजनैतिक स्थिति में भी मूलभूत परिवर्तन हो रहे थे। जब हमारे शांतिपूर्ण तथा अहिंसात्मक संघर्ष को सफलता मिली तो विश्व परिवर्तन के दौर से गुजर रहा था। इस संघर्ष का नेतृत्व ऐसे सच्चरित्र पुरूषों एवं महिलाओं तथा नेताओं द्वारा किया गया था, जिन्होंने औपनिवेशिक शासन के कष्टों व मुसीबतों का सामना किया, तथा भारी कष्ट और परेशानियां उठाईं थीं।
संविधान सभा में भाग लेने के लिए जो लोग निर्वाचित हुए थे, वे हमारे ही प्रिय नेता थे, जो जनसाधारण से जुड़े हुए प्रबुद्ध और विद्धान व्यक्ति थे, और देश के सांस्कृतिक मूल्यों से अनुप्रााणित थे। उनका व्यापक दृष्टिकोण था, जिसका संबंध सम्पूर्ण मानवता से था, और जिसका उद्देश्य हमारी संस्कृति के महान आध्यात्मिक मूल्यों का अन्य परम्पराओं के आधुनिक गतिशील दृष्टिकोण के साथ समन्वय करना था।

हमारे चारित्रिक मूल्यों तथा स्वतंत्रता संग्राम के दौरान प्राप्त हुए उनके अनुभवों ने हमारे लोगों को स्वतंत्रता, समता, न्याय, मानव गरिमा तथा लोकतंत्र के प्रति सम्मान के आदर्शों के लिए निरन्तर संघर्ष करते रहने की प्रेरणा दी। स्वतंत्रता संघर्ष के ये सिद्धांत, ये लक्ष्य और ये मूल्य ही हमारे संविधान का मूल तत्व और प्राण हैं, तथा संविधान की प्रस्तावना में इनका मुख्य रूप से उल्लेख किया गया है।

इससे पूर्व, आजादी मिलने से पहले के दशकों में भी हमारी जनता स्वतंत्र भारत के बारे में इन नेताओं की परिकल्पना पर विचार करती आ रही थी। पंडित मोतीलाल नेहरू ने भारत का प्रारूप तैयार किया था। मार्च, 1931 में हुए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कराची अधिवेशन में महात्मा गांधी द्वारा पेश किया गया वह प्रसिद्ध संकल्प स्वीकार किया गया था जिसमें मूल अधिकारों संबंधी हमारा घोषण पत्र शामिल था। संविधान सभा का पहला सत्र लम्बे और कठिन संघर्ष एवम् एक प्रभुसत्ता सम्पन्न और लोकतांत्रिक राष्ट्र के बारे में हमारी सुस्पष्ट परिकल्पना के साकार होने की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में सन् 1946 में हुआ था। जब पंडित जी ने कहा था "हमने एक राष्ट्र के स्वप्न और आकंाक्षा को लिखित और मुद्रित रूप देने का महान साहसिक कार्य शुरू किया है।"

संविधान सभा के सदस्यों के मन में एक ऐसा संविधान तैयार करने के प्रति समर्पण की भावना थी, जो भारत की अनेकतावादी और सारभूत एकात्मकता तथा एकता और अखण्डता को बनाये रखेगा। हमारा संविधान यह सुनिश्चित करता है कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र रहेगा। विभिन्न धार्मिक सम्प्रदायों के लोगों को, जो हमारे अनेकत्ववादी जीवन्त समाज के अंग हैं, अपने-अपने धर्मों का अनुसरण करने की स्वतंत्रता की गारंटी दी गई है । मेरा यह भी कहना है कि हमारे संविधान के अंतर्गत ये अधिकार उन लोागें को भी प्राप्त है, जो भारत के नागरिक नहीं हैं।

हमारा संविधान मात्र ऐसा राजनैतिक दस्तावेज नहीं है, जिसमें लोकतांत्रिक शासन ढांचे और संस्थाओं यथा-संसद,कार्यपालिका और न्यायपालिका की ही व्यवस्था की गई है। अपितु इसमें समाज के और विशेष रूप से गरीबों, शोषितों तथा दलितों के आर्थिक और सामाजिक उत्थान के लिए भी व्यवस्था की गई है। ग्रानविल आस्टिन ने कहा है, "सामाजिक क्रान्ति के प्रति वचनबद्धता की मूल भावना संविधान के भाग-तीन और चार में, मूल अधिकारों तथा राज्य के नीति निदेशक सिद्धान्तों में निहित है। ये संविधान की आत्मा हैं।" यह अत्यंत महत्वपूर्ण बात है कि मूल अधिकार न्यायालयों द्वारा लागू कराये जा सकते हैं। संविधान के अनुच्छेद 32 में इन अधिकारों की क्रियान्विति की गारंटी दी गई है। यह कार्यपालिका द्वारा संभावित ज्यादतियों को रोकने हेतु एक अत्यंत महत्वपूर्ण रक्षोपाय है, तथा हमारी न्यायपालिका, जो हमारे लोकतंत्र का एक प्रमुख अंग है, को एक भारी जिम्मेदारी सौंपता है, जिससे कि मनुष्य को उसकी मौलिक स्वतंत्रतायें दिलाना सुनिश्चित किया जा सके।

दिनांक 26 नवम्बर, 1949 को जब हमने अपना संविधान अंगीकार किया था, तब हमारे राजनेताओं और दूरदृष्टाओं ने यह कहा था कि संविधान का अच्छा या बुरा होना इस बात पर निर्भर करता है कि वे लोग, जिन पर इसे लागू करने की जिम्मेदारी होती है, इसे किस रूप में लागू करना चाहते हैं। प्रारूपण समिति के सभापति डा. बाबा साहेब अम्बेडकर, जो एक मेधावी विधिवेत्ता थे, ने संविधान को अंगीकार किए जाने से एक दिन पहले कहा था: [मैं उद्धृत करता हूं]

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संविधान की क्रियान्विति पूरी तरह से इस बात पर निर्भर नहीं करती कि संविधान का स्वरूप क्या है....राज्य के विभिन्न अंगों का कार्यकरण जिन तत्वों पर निर्भर करता है, वे हैं-जनता, और वे राजनैतिक दल, जिन्हें वे अपनी आकांक्षाओं और अपनी राजनीति को कार्यान्वित करने हेतु अपने साधन के रूप में स्थापित करते हैं।"

भारत का सौभाग्य रहा है कि यहां उत्कृष्ट प्रतिभा वाले नेता हुए हैं। उन्होने हमारे संसदीय लोकतंत्र की संस्थाओं के कार्यकरण में इस देश के महान नैतिक मूल्यों का समावेश किया। इस प्रकार उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि यहां लोकतंत्र फले-फूले, और हमारे समाज में उसकी जड़ें और अधिक गहरी हों। आप में से बहुत से लोगों को याद होगा कि पंडित जी ने लोकतंत्र के मुकुट में रत्न के समान विद्यमान इस संसद के कार्यकरण की ओर कितना अधिक ध्यान दिया, और इसमें कितनी व्यक्तिगत रूचि ली।

भारत इस बात पर गर्व कर सकता है कि उसने पिछले पांच दशकों के दौरान स्वतंत्रता की अपनी उपलब्धियों को सुरक्षित रखने के साथ-साथ उनका विस्तार भी किया है, संविधान के निर्माताओं ने हमें संवैधानिक थाती दी है। संविधान ने हमें एक ऐसे राष्ट्र के लिए एक सशक्त ढांचा प्रदान किया है, जो राज्यों का एक संघ है, संघ एवं राज्यों के बीच और हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था की विभिन्न संस्थाओं के बीच सौहार्दभाव का प्रतीक है। हम लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था यथा अपनी संसद, कार्यपालिका और न्यायपालिका के विविध तथा परस्पर जुड़े क्षेत्रों में महत्वपूर्ण सफलता प्राप्त करने का दावा कर सकते हैं। संविधान का दर्शन एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था का परिपोषण करता है, जिसमें लोकतंत्र के सिद्धांत और व्यवहार देश की जनता के स्वभाव का अभिन्न अंग बन जाये। आज तक हुए लोक सभा के लिए ग्यारह आम चुनावों के माध्यम से भारत की जनता ने इस गणराज्य के जिम्मेदार नागरिक के रूप में अपने कर्तव्यों का निर्वाह करने के अपने दृढ़ संकल्प को बार-बार अभिव्यक्त किया है।

हमारी संसद हमारी राजनैतिक व्यवस्था की एक सर्वोत्तम संस्था है। संसद के सदस्य जनता के वास्तविक प्रतिनिधि होते हैं, और वे राष्ट्र के व्यापक हितों की परिकल्पना को ध्यान में रखते हुए जनता के हितों को अभिव्यक्त करते हैं, जैसा कि 21 दिसम्बर, 1955 को लोक सभा में पंडित जी ने कहा था: [मैं उद्धृत करता हूं]

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संसद सदस्य भारत के किसी विशिष्ट क्षेत्र के ही सदस्य नहीं, अपितु संसद का प्रत्येक सदस्य भारत का है, और वह भारत का प्रतिनिधित्व करता है...." हमारा संवैधानिक ढांचा आर्थिक विकास और समाज के उत्थान में सहायक सिद्ध हुआ है। विधान मंडलों में समाज के वंचित वर्गों को प्रभावी प्रतिनिधित्व दिया जाता है, और इनमें महिलाओं का सशक्त प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के भी लिएकदम उठाए जा रहे हैं। हाल ही के वर्षों में हमने पंचायती राज संस्थाओं को नये प्रोत्साहन प्रदान किये हैं। इससे आम लोगों को हमारी लोकतांत्रिक प्रक्रिया में अत्यंत सार्थक और प्रभावी ढंग से भाग लेने के लिए प्रोत्साहन मिला है।

यदि हम अपने आसपास के राष्ट्रों को देखें, तो हम अपने लचीले और जीवन्त संविधान पर गर्व कर सकते हैं, जो समय के साथ बदलती परिस्थितियों, आवश्यकताओं और जरूरतों के अनुरूप परिवर्तित हुआ है। वास्तव में, यह अन्य देशों के लिए एक आदर्श संविधान बन गया है।

मैं समळाता हूं कि यह हम सबके लिए अपनी लोकतांत्रिक शासन व्यवस्थाओं के कार्यकरण में सुधान लाने के उपायों, पर विचार करने का एक महत्वपूर्ण अवसर है। हमें संविधान के विचारों और अभिप्राय को आम जनता तक पहुंचाना होगा। यह तभी संभव होगा, जब हम अपनी संस्थाओं, प्रशासन और कार्यप्रणाली को अधिकाधिक उत्तरदायी और जनता की आवश्यकताओं एवं भावनाओं के प्रति पूर्णतया सजग और संवेदनशील बनाने की चुनौती को स्वीकार करेंगे।

हम सबको एकता तथा मर्यादा के सिद्धांतों के सच्चे महत्व तथा भिन्न विचारों को व्यक्त करने की स्वतंत्रता के मूल्य को समळाना चाहिए, जो कि वास्तव में किसी भी अनेकतावदी समाज की विशेषताएं हैं। प्राचीन काल में हमारे ऋषियों के कथानुसार हमारे उद्देश्य एक हैं, हमारे प्रयास साळो हैं, पर अपने लक्ष्यों तक पहुंचाने के रास्ते विभिन्न हैं।

हमारे इतिहास में इस समय, जब हम एक नई शताब्दी और सहस्रवें वर्ष में प्रवेश करने की तैयारी कर रहे हैं, आइये हम सभी अपने आप से प्रश्न करें कि विकास और आधुनिकीरण के लिए सतत प्रयत्नशील इस महान और प्राचीन राष्ट्र के नागरिक होने के नाते हमारे लक्ष्य और कार्य क्या हैं। राष्ट्र निर्माण के काम में हमारे उत्तरदायित्व क्या हैं? हम सर्वोत्तम रूप से उनका निर्वहन कैसे कर सकते हैं? इनके उत्तर हम से दूर नहीं, और न ही उन्हें ढूंढने में कोई कठिनाई है। हमसे पूर्व हमारे महान राजनीतिळ्ाों के जीवन और कृत्यों के अवलोकन से हमें बहुत से उत्तर मिल जाते हैं। हमें उनके उत्तर निष्काम सेवा और त्याग की हमारी परम्परा में भी मिल जाते हैं और हम बापू के जीवन और मूल्यों से प्रेरणा लेते हैं और उनके अनासक्त और निष्काम कर्म अथवा नि:स्वार्थ सेवा अर्थात् फल की चिंता किए बिना सेवा के संदेश के अनुरूप स्वयं को सिद्ध करें।

यह वर्षगांठ भारत के प्रत्येक नागरिक को 'पूर्ण स्वराज' के लिए, लोगों को भलाई के लिए, समाज में और वास्तव में विश्व में शांति और सद्भावना पैदा करने के लिए कार्य करने की प्रतिज्ञा को दुहराने का अवसर प्रदान करती है। 

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