Wednesday, August 28, 2013

आर्य

आर्य    

संस्कृत शब्द आर्य का मतलब होता था कुलीन और सभ्य । इसलिये पुराने इतिहारकारों, जैसे मॅक्स म्युलर ने आदिम- और आधुनिक हिन्द-यूरोपीय भाषा बोलने वाली जातियों का नाम "आर्य" रख दिया । ये नाम यूरोपीय लोगों को क़ाफ़ी पसन्द आया और जल्द ही सभी यूरोपीय वासियों ने अपने अपने देशों को प्रचीन आर्यों की जन्मभूमि बताना शुरूकर दिया (ये बात आजतक जारी है) । ख़ासतौर पर हिट्लर प्रचारित किया कि प्राचीन आर्यों की जन्मभूमि जर्मनी ही है, और आर्य का अर्थ शुद्ध नस्ल का मनुष्य है, जिसकी त्वचा गोरी, क़द लम्बा, आँखे नीली और बाल सुनहरे हैं । हिट्लर के मुताबिक जर्मन लोग ही सर्वोच्च और सर्वशक्तिमान नस्ल के हैं, और ख़ास तौर पर यहूदी लोग घटिया नस्ल के और अनार्य हैं (और जीने के लायक भी नहीं) । ब्रिटिश लोगों ने प्रचारित किया कि लगभग 1700 ई.पू. में हिन्द-आर्य कबीलों ने यूरोप से आकर सिन्धु-घाटी में आक्रमण किया और भारत की देशी सिन्धु घाटी सभ्यता को उजाड़ दिया और उसके निवासियों का नरसंहार किया और बाद में बचे-खुचे लोगों को ग़ुलाम बना लिया -- जिनको ऋग्वेद में दास और दस्यु कहा गया है (इस तरह वो अपने उपनिवेशवाद को सही ठहराना चाहते थे ) ।
हिट्लर के यहूदी नरसंहार के बाद अब "आर्य" शब्द का मतलब भाषाई अर्थ में लगाया जाता है, न कि नस्ल के लिये । पर अभी भी इतिहासकार और भाषाविद आर्यों की जन्मभूमि की खोज कर रहे हैं । एक विचारधारा के मुताबिक आर्यों की जन्मभूमि मध्य एशिया में थी, शायद दक्षिणी रूस या कैस्पियन सागर के आस-पास । वहीं से उनके कबीले दुनिया के कई देशों में पहुँचे । हिन्द-आर्य कबीलों का भारतीय उपमहाद्वीप में प्रवास धीरे-धीरे और शान्तिपूर्वक हुआ था, और ब्रिटिश इतिहासकारों की "ख़ून-खराबे" वाली बातों का कोई प्रमाण नहीं है । उस वक़्त (1800 ई.पू.) तक सिन्धु-घाटी सभ्यता या तो भूकम्पों से या सिन्धु-सरस्वती नदियों की धारा में बदलाव और सूखे की वजह से ख़ुद ही तबाह हो गयी थी । ये विचारधारा आजकल दुनिया के ज़्यादातर भाषाविद और इतिहासकार मानते हैं । मध्य एशिया के "कुरगन कब्र-टीले" प्राचीन आर्यों द्वारा बनाये गये माने जाते हैं । एक दूसरी विचारधारा के मुताबिक प्राचीन आर्यों की जन्मभूमि भारत ही है, और यहीं से आर्य कबीले यूरोप और बाकी एशिया में प्रवास किये । इस बात को कई भारतीय और हिन्दुत्व-वादी मानते हैं (और ये भी कि सिन्धु-सरवती सभ्यता आर्यों की सभ्यता थी और बाकी हिन्द-यूरोपीय भाषाएँ संस्कृत से विकसित हुई हैं), पर बाकी दुनिया में इस दृष्टिकोण की कोई कद्र नहीं है । ज़्यादातर भाषाविदों के मुताबिक "आदिम-हिन्द-यूरोपीय" भाषा के पुनर्निर्मित शब्द यही इशारा करते हैं कि प्राचीन आर्य जन्मस्थान एक विशाल, शीतोष्ण घास का चारागाह था । वैसे भी भारतीय जलवायु और पशु-पक्षियों के शब्दों के लिये यूनानी, लैटिन, जर्मन, और अन्य हिन्द्-यूरोपीय भाषाओं में मिलते जुलते शब्द नहीं मिलते, जैसे मोर, मुर्गा, बाघ, हाथी, आम, केला, पीपल, बरगद, नीम, गर्म-मौसम, गैण्डा, भैंस, चावल, इत्यादि । साथ-ही-साथ, सिन्धु घाटी सभ्यता में बड़े शहर, मछ्ली का उपभोग, 2000 ई.पू. से पहले घोड़े की पूरी ग़ैरहाज़िरी और बाद में भी घोड़ों के बहुत ही कम अवशेष, उनके देवताओं के चित्रों का वैदिक देवताओं से भिन्न होना, उनका बाघ और बैल को आदर जबकि ऋग्वेद में बब्बर-शेर और गाय अधिक उल्लेखित हैं, उनके अधिकांश शहरों में (कालीबंगन, आदि को छोड़कर) वैदिक यज्ञ-अग्नि-वेदी का अभाव, इत्यादि यही इशारा करते हैं कि इसके निवासी आर्य तो नहीं थे । जो भी हो, ये सवाल आज भी तीखी नोक-झोंक का केन्द्र बना हुआ है ।

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